गोस्वामियों और नाथों का तुलनात्मक अध्ययन
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गोस्वामी का दूसरा नाम गोसाईं है और दोनों का अर्थ होता है -- गो + आत्मा = आत्मा का स्वामी या जितेंद्रिय या मनवशकर्त्ता या पृथ्वीराज या ब्रह्मांड का मालिक । इस लिहाज से देखें तो गोस्वामी या गोसाईं का अर्थ अत्यंत पवित्र , श्रेष्ठ और और कल्याणकारी होता है। पहले यह एक उपाधि होती थी , फिर यह पंथ बनी और अब एक जाति है । गोस्वामियों की दस शाखाएँ ( वन, अरण्य, तीर्थ,आश्रम, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती, भारती, पुरी ) और बावन उप शाखाएँ ( अर्थात मढ़ियां ) हैं जैसे रामदत्ती, ओंकारी, कुमुस्थनाथी, मथुरा पुरी इत्यादि। गोस्वामियों के पंथ को दशनाम ( या दसनाम ) पंथ कहते हैं।
नाथ शब्द 'नाथृ' धातु से बना है जिसका अर्थ होता है याचना, ऐश्वर्य, आशीर्वाद इत्यादि। जिसमें याचना, ऐश्वर्य, आशीर्वाद, कल्याण मिलता है वह नाथ है। नाथ का साधारण अर्थ है स्वामी, ईश्वर, प्रभु, मालिक, अधिपति इत्यादि। परन्तु नाथों की असली जाति 'जोगी' है जिसे शुद्ध रूप में 'योगी' कहते हैं । इन्हें जोगी या योगी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका जोग अर्थात योग से गहरा संबंध रहा है। जोगी या योगी को नाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस पंथ ( नाथ पंथ ) के प्रर्वतक एवं संत अपने नामों के साथ 'नाथ' उपनाम का प्रयोग करते थे, उदाहरणार्थ --मत्स्येंद्रनाथ ( मछिंदरनाथ ), गोरक्षनाथ ( गोरखनाथ ) , जलंधरनाथ, चर्पटनाथ इत्यादि । जोगी ( योगी ) एक जाति है जबकि नाथ एक पंथ है । नाथ पंथ नौ नाथों, चौरासी सिद्धों और बारह पंथों ( शाखाओं ) का दर्शन है।
दशनाम पंथ ( अर्थात गोस्वामी जाति ) और नाथ पंथ ( अर्थात जोगी जाति ) दो अलग-अलग संगठन हैं, दो अलग- अलग विचारधाराएँ हैं। दोनों के अलग- अलग दर्शन हैं और दोनों के अलग - अलग कार्यक्षेत्र हैं। यहाँ तक कि दोनों के अपने अलग इतिहास हैं। कुछ लोग अज्ञानतावश दोनों को एक ही मान लेते हैं जबकि कुछ बातों में ये एक जैसे हैं और कुछ बातों में ये एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। आओ, इन्हीं बातों को विस्तार से जानें ----------
समानताएं
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★ दोनों के आराध्यदेव भगवान शिव हैं अर्थात ये दोनों शैवमतावलम्बी हैं।
★ दोनों ही शैव होने के साथ- साथ शाक्त भी हैं अर्थात ये दोनों शिव के साथ-साथ शक्ति को भी मानते हैं।
★ दशनाम गोस्वामियों के बड़े वर्ग हैं -- विरक्त एवं गृहस्थ। नाथ पंथ में भी ऐसा ही है।
★ दशनाम पंथ की दो बड़ी धाराएं हैं -- पिता-पुत्र परम्परा जिसे 'बिन्दु' कहते हैं और गुरू- शिष्य परम्परा जिसे 'नाद' कहते हैं। पिता- पुत्र परम्परा ( बिंदु ) में गोस्वामी बनना जन्मजात है अर्थात पिता के बाद पुत्र स्वतः गोस्वामी बनता है लेकिन गुरू- शिष्य परम्परा ( नाद ) में किसी बाह्य व्यक्ति को दीक्षित करके शिष्य ( चेला ) बनाया जाता है। नाथ पंथ में भी ऐसा ही है।
★ विरक्त गोस्वामी पूरी तरह से भगवा वेष में होते हैं जबकि गृहस्थ गोस्वामी आंशिक रूप से भगवा वस्त्र धारण करते हैं जैसे - भगवा टोपी या भगवा पगड़ी या भगवा कमीज या भगवा अंगोछा इत्यादि। इसी प्रकार की वस्त्र व्यवस्था नाथो में भी है।
★ दशनाम गोस्वामियों में समाधि परम्परा का चलन है। समाधि के दो वर्गीकरण हैं -- ( क ) मृतक समाधि और ( ख ) जीवित समाधि । समाधि की दो श्रेणियां हैं- (अ ) भू समाधि और ( आ ) जल समाधि। दाह संस्कार को बुरा माना जाता है। ऐसा ही नाथ पंथ में है।
★ दोनों ही पंथ के लोग रूद्राक्ष धारण करते हैं।
★ दोनों ही योग और प्राणायाम के लिए प्रसिद्ध हैं।
★ दोनों ही औषधियों के ज्ञाता रहे हैं और औषधि चिकित्सक भी।
★ दोनों ही पंथों के लोग संगीत में विशेष रूचि रखते हैं।
★ दोनों ही पंथों के लोग तंत्रविद्या और जादू-टोनों में विश्वास रखते हैं।
★ दोनों ही पंथों के मठ, मंदिर और समाधिस्थल स्थापत्य कला के शानदार नमूने हैं ।
★ दोनों ही पंथों को राजाओं, ज़मीनदारों और जागीरदारों से आर्थिक सहायता एवं ज़मीनें मिलती थी । दान में दी गई ज़मीनों को वापस लेना पाप समझा जाता था।
★ दोनों ही पंथ अतीत में हिंदू धर्म को बचाने के लिए प्रयत्नशील रहे।
★ दोनों ने ही सदाचार, नैतिकता और आदर्शों को अपनाने पर बल दिया।
★ दोनों ने ही मानव कल्याण को अपना लक्ष्य बनाया ।
★ दोनों ही पंथों के पास बड़े- बड़े मठ- मंदिर हैं।
★ दोनों ही पंथों को भारत के अन्य पंथों एवं समाजों से भरपूर सम्मान मिला। आम लोग दोनों ही पंथों के लोगों के पैर छूते हैं और इनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
असमानताएं
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★ दशनाम पंथ में अद्वैत ब्रह्मविद्या के एकादश आचार्य हुए हैं--- नारायण, ब्रह्मा, रुद्र, वशिष्ठ, शक्ति, पराशर, व्यास, शुकदेव, गौड़पाद, गोविंदपाद , शंकरपाद ( अर्थात आदि शंकराचार्य ) ।
नाथ पंथ के प्रवर्तकों के नाम इस प्रकार हैं --- आदिनाथ, मछेन्द्रनाथ, गोरखनाथ, सत्यनाथ, चौरंगीनाथ, कंथडिनाथ, चम्पानाथ इत्यादि।
★ दशनाम पंथ की दस शाखाएं हैं --- 1- वन, 2- अरण्य, 3- तीर्थ, 4- आश्रम, 5- गिरि, 6- पर्वत, 7- सागर, 8- सरस्वती, 9- भारती , 10-- भारती ।
नाथ पंथ की बारह शाखाएँ ( पंथ ) हैं -- 1- सत्यनाथी , 2- धर्मनाथी, 3- नाटेश्वरी , 4- कन्हड़, 5- बैराग पंथ , 6- राम पंथ, 7- कपिलानी, 8- माननाथी, 9- आई पंथ, 10- पागल पंथ, 11- ध्वज पंथ , 12- गंगानाथी ।
★ दशनाम पंथ में सबसे अधिक मान्यता आदि शंकराचार्य की है जबकि नाथ पंथ में सबसे अधिक मान्यता गुरू गोरखनाथ की है।
★ दशनाम पंथ नाथ पंथ से अधिक प्राचीन है --- ऐसा मेरा नहीं बल्कि इतिहासकारों का मत है । दशनाम पंथ के सिरमौर आदि शंकराचार्य ( 788- 820 ई० ) थे जिनका कार्यकाल 8वीं और 9वीं शताब्दियों के बीच का माना जाता है जबकि इतिहासकार नाथों के प्रवर्तकों का काल नौवीं शताब्दी और तेरहवीं शताब्दी ईसवी के बीच निर्धारित करते हैं। कुछ लोगों मत है कि कुछ संतों ने दशनाम पंथ से अलग होकर अपना एक अलग पंथ बना लिया जिसे नाथ पंथ कहते हैं। दशनाम पंथ में 52 मढ़ियां ( उप शाखाएँ ) हैं जिनमें से वेदगिरि की लामा मढ़ी सहित गिरि शाखा की अट्ठाईस मढ़ियां हैं जिनमें से 50% के साथ 'नाथी' उपनाम लगा हुआ है जैसे -- कुमुस्थनाथी, सहजनाथी, रतननाथी, दुर्गानाथी इत्यादि। कुछ विद्वानों का मत है कि ये लोग नाथ पंथ को छोड़कर दशनाम पंथ में घुस गए थे। कहना मुश्किल है कि इस तर्क में कितनी सच्चाई है। यह एक शोध का विषय है।
★ दशनाम पंथ के लोग उपनिषदान्तर्गत अद्वैत मत के अनुयायी हैं जबकि नाथ लोग योगिनी, भैरव, तांत्रिक, मांत्रिक मत के अनुयायी हैं । इनके बारे में यह कथन है --- "नवनाथासों पाइके बावनवीर बखान। चौंसठ योगिनी गायके , आठ भैरव को जान।।"
★ दशनाम पंथ मूलतः शैवधर्म का एक अंग है। अपने प्रारंभिक काल में जैन धर्म और बौद्ध धर्म की भांति शैवधर्म भी वैष्णवधर्म , वर्णव्यवस्था और संस्कृति का विरोधी था लेकिन कालांतर में वैष्णव संस्कृति और शैव संस्कृति में समन्वय हो गया । दशनाम पंथ उसी समन्वय का परिणाम है । दशनाम पंथ शैव होते हुए भी इसका झुकाव वैदिक धर्म और वैष्णव संस्कृति की ओर है। यही बात दशनाम पंथ को अन्य शैव पंथों से अलग करती है। आदि शंकराचार्य ने दशनाम गोस्वामियों को सनातन की रक्षा करने और इसके प्रचार- प्रसार करने का काम सौंपा था जिसका निर्वहन ये पिछले 1300 सौ वर्षों से आज तक करते आ रहे हैं । इस प्रकार दशनाम गोस्वामी मुण्डन, उपवास, तीर्थयात्रा, अग्निहोत्र , संन्यास और वैदिक मार्ग के अनुयायी हैं जबकि दूसरी ओर यह कहा गया है कि जो वैदिक मार्ग गोस्वामियों के लिए विहित है वही नाथों के लिए वर्जित है-- "मुण्डण चोपवासंच तीर्थयात्रा तथैवच । अग्नि होत्रंच संन्यासं नाथ पंथे विवर्जयेता ।।"
★ प्राचीन काल में केवल ब्राह्मण लोग ही बनते थे लेकिन समय की मांग के अनुसार क्षत्रिय और वैश्य भी दशनाम गोस्वामी पंथ में शामिल हुए । दशनाम गोस्वामी पंथ में केवल द्विजों ( ब्राह्मणों, क्षत्रियों , वैश्यों ) को शामिल किया गया लेकिन शूद्रों को शामिल नहीं किया गया । यदि धोखा देकर या छद्मवेश में कोई शूद्र होकर गोस्वामी बन गया हो तो उसको अपवाद मानना चाहिए।
नाथ पंथ में चारों वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य , शूद्र ) के लोग शामिल हुए हैं। इतना ही नहीं नाथ पंथ में मुसलमान भी शामिल हुए। आदि शंकराचार्य उच्च वर्ग तक ही पहुंच बना सके जबकि गुरू गोरखनाथ समाज के सबसे नीचे के पायदान पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंच गए। इसीलिए नाथ पंथ में नट , बंजारे, सपेरे, कालबेलिये भी दीक्षित होकर नाथ ( जोगी ) बने ।
★ दशनाम पंथ का बीजमंत्र या अभिवादन 'ओइ्म नमो नारायण' है जबकि नाथों का बीजमंत्र या अभिवादन 'आदेश-आदेश' है।
★ दशनाम पंथ सनातन धर्म का पोषक रहा है और साथ ही बौद्ध एवं जैन संस्कृतियों का विरोधी भी रहा है जबकि प्राचीन काल से ही नाथों का सम्बंध जैनों और बौद्धों से रहा है। कानों में कुण्डल धारण करने की परम्परा नाथों ने जैनों एवं बौद्धों से ही ली है जो कि साथ ही चर्वाक मत के दर्शन कराता है।
★ दशनाम पंथ ने सनातन धर्म को बचाने के लिए जैनों, बौद्धों, मुसलमानों और अंग्रेजों से युद्ध किये । बंगाल का संन्यासी विद्रोह भारतीय इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना है। वंदे मातरम् का उद्गम वहीं से हुआ था । वंदे मातरम् बंगाल के विद्रोही गोस्वामियों की देन है ।
नाथ पंथ का ऐसा कोई इतिहास नहीं है।
★ नाथों में ही 'कनफटा योगी' होते हैं जिनके कानों में बड़े-बड़े कुण्डल होते हैं। आक की लकड़ी से छेद करके मुद्राओं ( कुण्डलों ) को कान में पहनाया जाता है। उस समय बहुत दर्द होता है । यदि पहनने वाले को दर्द हो जाये या उसकी चीख निकल जाये तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है और चेला नहीं बनाया जाता है।
दशनाम गोस्वामियों में कुण्डल पहनने की प्रथा नहीं है । कोई शौक या फैशन में ऐसा कर ले तो उसे अपवाद ही माना जायेगा।
★ सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए दशनाम पंथ में अखाड़ों का निर्माण हुआ। हमारे देश में कुल तेरह अखाड़े हैं जिनमें से सात दशनाम गोस्वामियों के, तीन वैष्णवों के और तीन उदासीन सिक्खों के हैं। अभी हाल के कुम्भ स्नान पर किन्नरों ने अपना चौदहवां अखाड़ा भी बना लिया है। दशनाम गोस्वामी शैव संन्यासियों के सात अखाड़ों के नाम इस प्रकार हैं -- 1- पंच दशनाम जूना अखाड़ा, 2- पंचायती तपोनिधि श्री निरंजनी अखाड़ा, 3- पंचायती श्री महानिर्वाणी अखाड़ा, 4- पंच दशनाम श्री आवाह्न अखाड़ा, 5- अग्नि अखाड़ा, 6- अटल अखाड़ा, 7- आनंद अखाड़ा ।
नाथों का ऐसा कोई अखाड़ा नहीं है।
★ दशनाम गोस्वामियों में अनेक राजा हुए हैं, उदाहरणार्थ --बांदा, बिन्दकी, मोठ ( झांसी ), गुरसराय , मौहदा , कालिंजर, बुंदेलखंड का राजा अनूप गिरि उर्फ हिम्मत बहादुर गोसाईं ( सन् 1750- 1804 ई० ) भारतीय इतिहास में अपना एक अलग स्थान रखता है। हैदराबाद ( दक्षिण ) में तो पिछली शताब्दी में अनेक राजा हुए जिनके नाम हैं-- राजा विश्वेश्वर गिरि वीरभान गिरि, राजा प्रताप गिरि नृसिंह गिरि बहादुर, राजा मुकुंद गिरि, राजा धनराज गिरि इत्यादि। राजा धनराज गिरि का मुम्बई में गेटवे ऑफ इंडिया के सामने एक महल था जिसे बाद में एक होटल में परिवर्तित कर दिया गया था और जिसकी स्वामिनी उनकी पुत्री इंदिरा धनराज गिरि बनी थीं। दक्षिण में ही बंशी गिरि एक साहूकार गोस्वामी थे जिनसे हैदराबाद का निज़ाम भी कर्ज़ लेता है। जब निज़ाम पर कर्ज़ ज्यादा बढ़ गया तो उसने बंशी गिरि पर छापा मारकर उनके सारे कागजात जब्त कर लिए और कर्ज़ वापस नहीं किया।
नाथों का ऐसा कोई इतिहास नहीं है। हां, इतना अवश्य है कि अनेक राजाओं, राजकुमारों, सेनापतियों , जागीरदारों ने नाथ पंथ को अपनाया था। राव भृर्तहरि , पूरनमल ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं।
★ गोस्वामियों के पहनावे में ज्यादा तामझाम नहीं है। विरक्त गोस्वामी भस्म, रुद्राक्ष और भगवा वेष धारण करते हैं जबकि गृहस्थ गोस्वामी मात्र एक वस्त्र ही भगवा धारण कर ले तो पर्याप्त है , जैसे - टोपी या पगड़ी या कमीज या धोती या अंगोछा।
नाथों की छवि एवं पहनावा नाथों की पहचान दूर से ही बता देते हैं। मेखला, सेली, सिंगी, कर्णमुद्रा उनकी पहचान के चिह्न हैं । विरक्त नाथ भगवा वस्त्र, भस्म, रूद्राक्ष धारण करते हैं।
★ गोस्वामी लोग प्राणियों में गाय, बंदर और सांड को अधिक मान्यता देते हैं । गाय को इसलिए ज्यादा मान्यता देते हैं क्योंकि प्रारंभिक अवस्था में गोस्वामी लोग गाय को पालकर ही अपना गुज़ारा करते थे। बंदर को इसलिये कि उसे हनुमानजी का रूप माना जाता है। रामायण में हनुमानजी को गोसाईं कहा गया है। तुलसीदास ने भी गाया है कि --"जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरदेव की नाईं ।।" सांड ( नन्दी ) को भगवान शिव का वाहन मानकर ज्यादा मान्यता देते हैं।
नाथ लोग प्राणियों में कुत्ते को ज्यादा मान्यता देते हैं क्योंकि कुत्ते को भैरव का रूप माना जाता है।
★ गोस्वामी लोगों का भोजन सात्विक होता है। पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर फैशन के दौर में कुछ लोग मांस-मदिरा का सेवन भी करते हैं परंतु आम गोस्वामी इन चीजों को अच्छा नहीं मानता है ।
नाथों का भोजन भी गोस्वामी लोगों के भोजन सा ही होता है । लेकिन नाथों की एक शाखा अघोरी है जोकि तन्त्र साधना के लिए चिता से मांस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं और सम्भोग करते हैं। वे अपना मल- मूत्र भक्षण करने में भी परहेज़ नहीं करते।
उपरोक्त वर्णन से सिद्ध हो गया होगा कि दशनाम गोस्वामी पंथ और नाथ पंथ दोनों एकदम अलग हैं, फिर भी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश ( विषेशकर इलाहाबाद / प्रयागराज ) , राजस्थान, दिल्ली में कुछ लोगों के रिश्ते आपस में हुए हैं । पिछली शताब्दी में इलाहाबाद के पत्रकार और समाजसेवी स्व० महादेव गिरि 'शम्भु' तो गोस्वामियों और नाथों को साथ लेकर आगे बढ़े थे। उन्होंने सन् 1936 ई० में "अखिल भारतीय गोस्वामी महासभा " की स्थापना की थी। उसी विचारधारा और संस्था को कालांतर में इलाहाबाद निवासी स्व. श्री आनंद देव गिरि ( सोलीसिटर जनरल ऑफ इंडिया ) ने आगे बढ़ाया था [ जिसके वर्तमान में अध्यक्ष दिल्लीवासी महंत सच्चिदानंद गिरि हैं ] अखिल भारतीय गोस्वामी महासभा का विरोध उस समय दिल्लीवासी स्व. श्री राम लाल गिरीश ने किया था और उन्होंने एक समानांतर संस्था दिल्ली में खड़ी कर दी थी जिसका नाम था -- "अखिल भारतीय दसनाम गोस्वामी समाज"【 जिसके वर्तमान में अध्यक्ष श्री महेश गिरि ( गुड़गांव / बीघेपुर , उ.प्र. ) हैं। 】
गोस्वामियों और नाथों के मिलन से जो बच्चे पैदा हो रहे हैं वे अपना उपनाम "नाथ गोस्वामी " लिख रहे हैं या बता रहे हैं जबकि इस नाम की जाति हमारे देश में है ही नहीं । शिक्षित ,सम्पन्न एवं एडवांस नाथ भी अपने आप को 'गोस्वामी' लिख रहे हैं या बता रहे हैं ।