*🔘1. पंचोपचार –* गन्ध , पुष्प , धूप , दीपतथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को‘पंचोपचार’ कहते हैं |
*🔘2. पंचामृत –* दूध , दही , घृत , मधु{ शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को‘पंचामृत’ कहते हैं |
*🔘3. पंचगव्य –* गाय के दूध , घृत , मूत्रतथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में‘पंचगव्य’ कहते हैं |
*🔘4. षोडशोपचार –* आवाहन् , आसन ,पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र, अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप ,नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथादक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करनेकी विधि को ‘षोडशोपचार’ कहतेहैं |
*🔘5. दशोपचार –* पाध्य , अर्घ्य ,आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प ,धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजनकरने की विधि को ‘दशोपचार’ कहतेहैं |
*🔘6. त्रिधातु –* सोना , चांदी औरलोहा |कुछ आचार्य सोना , चांदी, तांबा इनके मिश्रण को भी
‘त्रिधातु’ कहते हैं |
*🔘7. पंचधातु –* सोना , चांदी , लोहा, तांबा और जस्ता |
*🔘8. अष्टधातु –* सोना , चांदी ,लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा ,कांसा और पारा |
*🔘9. नैवैध्य –* खीर , मिष्ठान आदि
मीठी वस्तुये |
*🔘10. ,म,नवग्रह –* सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध, गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु |
*🔘11. नवरत्न –* माणिक्य , मोती ,मूंगा , पन्ना , पुखराज , हीरा ,
नीलम , गोमेद , और वैदूर्य |
*🔘12. [A] अष्टगंध -*
अगर , तगर , गोरोचन, केसर , कस्तूरी , ,श्वेत चन्दन , लालचन्दन और सिन्दूर [ देवपूजन हेतु ]
*🔘[B]* अगर , लाल चन्दन , हल्दी , कुमकुम ,गोरोचन , जटामासी , शिलाजीतऔर कपूर [ देवी पूजन हेतु]
*🔘13. गंधत्रय –* सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम |
*🔘14. पञ्चांग –* किसी वनस्पति केपुष्प , पत्र ,फल , छाल ,और जड़ |
*🔘15. दशांश –* दसवां भाग |
*🔘16. सम्पुट –* मिट्टी के दो शकोरोंको एक-दुसरे के मुंह से मिला कर बंदकरना |
*🔘17. भोजपत्र –* एक वृक्ष की छाल |मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र काऐसा टुकडा लेना चाहिए , जोकटा-फटा न हो |
*🔘18. मन्त्र धारण –* किसी भी मन्त्रको स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ मेंधारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा मेंधारण करना चाहें तो पुरुष को अपनीदायीं भुजा में और स्त्री को बायींभुजा में धारण करना चाहिए |
*🔘19. ताबीज –* यह तांबे के बने हुएबाजार में बहुतायत से मिलते हैं | येगोल तथा चपटे दो आकारों में मिलतेहैं | सोना , चांदी , त्रिधातु तथाअष्टधातु आदि के ताबीज बनवायेजा सकते हैं |
*🔘20. मुद्राएँ –* हाथों की अँगुलियोंको किसी विशेष स्तिथि में लेने किक्रिया को ‘मुद्रा’ कहा जाता है |मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं |
*🔘21. स्नान –* यह दो प्रकार काहोता है | बाह्य तथाआतंरिक,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिकस्नान जप द्वारा होता है |
*🔘22. तर्पण –* नदी , सरोवर ,आदि केजल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर,हाथ की अंजुली द्वारा जल गिरानेकी क्रिया को ‘तर्पण’ कहा जाताहै | जहाँ नदी , सरोवर आदि न हो ,वहां किसी पात्र में पानी भरकरभी ‘तर्पण’ की क्रिया संपन्न कर लीजाती है |
*🔘23. आचमन –* हाथ में जल लेकर उसे अपनेमुंह में डालने की क्रिया को आचमनकहते हैं |
*🔘24. करन्यास –* अंगूठा , अंगुली ,करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को‘करन्यास’ कहा जाता है |
*🔘25. हृद्याविन्यास –* ह्रदय आदिअंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारणको ‘हृदय्विन्यास’ कहते हैं |
*🔘26. अंगन्यास –* ह्रदय , शिर , शिखा, कवच , नेत्र एवं करतल – इन 6 अंगों सेमन्त्र का न्यास करने की क्रियाको ‘अंगन्यास’ कहते हैं |
*🔘27. अर्घ्य –* शंख , अंजलि आदिद्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देनाकहा जाता है |घड़ा या कलश मेंपानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापनकहते हैं | अर्घ्य पात्र में दूध , तिल ,कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प ,चावल एवं कुमकुम इन सबको डालाजाता है........
*🔘2. पंचामृत –* दूध , दही , घृत , मधु{ शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को‘पंचामृत’ कहते हैं |
*🔘3. पंचगव्य –* गाय के दूध , घृत , मूत्रतथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में‘पंचगव्य’ कहते हैं |
*🔘4. षोडशोपचार –* आवाहन् , आसन ,पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र, अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप ,नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथादक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करनेकी विधि को ‘षोडशोपचार’ कहतेहैं |
*🔘5. दशोपचार –* पाध्य , अर्घ्य ,आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प ,धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजनकरने की विधि को ‘दशोपचार’ कहतेहैं |
*🔘6. त्रिधातु –* सोना , चांदी औरलोहा |कुछ आचार्य सोना , चांदी, तांबा इनके मिश्रण को भी
‘त्रिधातु’ कहते हैं |
*🔘7. पंचधातु –* सोना , चांदी , लोहा, तांबा और जस्ता |
*🔘8. अष्टधातु –* सोना , चांदी ,लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा ,कांसा और पारा |
*🔘9. नैवैध्य –* खीर , मिष्ठान आदि
मीठी वस्तुये |
*🔘10. ,म,नवग्रह –* सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध, गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु |
*🔘11. नवरत्न –* माणिक्य , मोती ,मूंगा , पन्ना , पुखराज , हीरा ,
नीलम , गोमेद , और वैदूर्य |
*🔘12. [A] अष्टगंध -*
अगर , तगर , गोरोचन, केसर , कस्तूरी , ,श्वेत चन्दन , लालचन्दन और सिन्दूर [ देवपूजन हेतु ]
*🔘[B]* अगर , लाल चन्दन , हल्दी , कुमकुम ,गोरोचन , जटामासी , शिलाजीतऔर कपूर [ देवी पूजन हेतु]
*🔘13. गंधत्रय –* सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम |
*🔘14. पञ्चांग –* किसी वनस्पति केपुष्प , पत्र ,फल , छाल ,और जड़ |
*🔘15. दशांश –* दसवां भाग |
*🔘16. सम्पुट –* मिट्टी के दो शकोरोंको एक-दुसरे के मुंह से मिला कर बंदकरना |
*🔘17. भोजपत्र –* एक वृक्ष की छाल |मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र काऐसा टुकडा लेना चाहिए , जोकटा-फटा न हो |
*🔘18. मन्त्र धारण –* किसी भी मन्त्रको स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ मेंधारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा मेंधारण करना चाहें तो पुरुष को अपनीदायीं भुजा में और स्त्री को बायींभुजा में धारण करना चाहिए |
*🔘19. ताबीज –* यह तांबे के बने हुएबाजार में बहुतायत से मिलते हैं | येगोल तथा चपटे दो आकारों में मिलतेहैं | सोना , चांदी , त्रिधातु तथाअष्टधातु आदि के ताबीज बनवायेजा सकते हैं |
*🔘20. मुद्राएँ –* हाथों की अँगुलियोंको किसी विशेष स्तिथि में लेने किक्रिया को ‘मुद्रा’ कहा जाता है |मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं |
*🔘21. स्नान –* यह दो प्रकार काहोता है | बाह्य तथाआतंरिक,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिकस्नान जप द्वारा होता है |
*🔘22. तर्पण –* नदी , सरोवर ,आदि केजल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर,हाथ की अंजुली द्वारा जल गिरानेकी क्रिया को ‘तर्पण’ कहा जाताहै | जहाँ नदी , सरोवर आदि न हो ,वहां किसी पात्र में पानी भरकरभी ‘तर्पण’ की क्रिया संपन्न कर लीजाती है |
*🔘23. आचमन –* हाथ में जल लेकर उसे अपनेमुंह में डालने की क्रिया को आचमनकहते हैं |
*🔘24. करन्यास –* अंगूठा , अंगुली ,करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को‘करन्यास’ कहा जाता है |
*🔘25. हृद्याविन्यास –* ह्रदय आदिअंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारणको ‘हृदय्विन्यास’ कहते हैं |
*🔘26. अंगन्यास –* ह्रदय , शिर , शिखा, कवच , नेत्र एवं करतल – इन 6 अंगों सेमन्त्र का न्यास करने की क्रियाको ‘अंगन्यास’ कहते हैं |
*🔘27. अर्घ्य –* शंख , अंजलि आदिद्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देनाकहा जाता है |घड़ा या कलश मेंपानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापनकहते हैं | अर्घ्य पात्र में दूध , तिल ,कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प ,चावल एवं कुमकुम इन सबको डालाजाता है........