जैसे कि नाम में ही विदित है गोचर जहां पर गाय चारा चरती है और विचरण करती है उस जगह को गोचर कहते हैं जितना पुराना मानव इतिहास है उतना ही पुराना गौ माता का इतिहास है कोई भी गांव मानव बस्ती अपने खेत खलियानओं के साथ गौ माता के लिए जमीन की एक हिस्सेदारी छोड़ती है उसे ही गोचर कहते हैं सनातन धर्म एक दूसरे के सहअस्तित्व के सात्विक नियम को मानता है
पुराने जमाने में राजा महाराजा गांव के ठाकुर धन्ना सेठ साधन संपन्न किसान जब देवलोक होते थे (स्वर्गवास) तब अपने पीछे दो चार बीघा जमीन गोचर के लिए छोड़ते से ताकि उस जगह पर गौ माता अपना आहार प्राप्त करें विश्राम करें तब उसका पुण्य उन्हें स्वर्ग लोक में भी मिले
जब कोई इंसान मृत्यु के समय होता है तब अकसर वो गोदान करता है ताकि उसकी मृत्यु समाधि पूर्वक हो
पूरे दिन में पूजा का या शादी मुहूर्त का जो समय बिना मुहूर्त के बिना काल की गणना के बिना चौघड़िए के श्रेष्ठ माना गया है वह है गोधूलि बेला यानी जब सूरज अस्त होने की तैयारी में हो चंद्रमा उदय होने की तैयारी में हो यानी सूरज और चांद की साक्षी हो गौ माता वन से या वह गोचर से अपने पैरों से #रज यानी #धूल हवा में उड़ाते हुए घर को लौटती है उसे #गोधूलि बेला कहते हैं शादी का या लक्ष्मी पूजन का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त होता है
, गांवों में रहने वाले और हम साधारण हिंदू यह मानते हैं की गोचर में चलना भी पाप है और गोचर में चलने के बाद हम वही पर अपने जूते #खंखेरते है ताकि गोचर की रज भी अपने घर पर ना आ पाए वरना पाप के भागीदार होंगे
, और आज कुछ #राक्षसी प्रवृत्ति के लोग गोचर पर कब्जा कर रहे हैं गौ माता के लिए छोड़ी हुई जमीन पर वहां पर प्लॉट काट रहे हैं दुकानें बना रहे हैं या खेती कर रहे हैं वह अपने अनर्थ का बुलावा कर रहे हैं गोचर हडपने वाले के परिवार का जड़ और मूल से सर्वनाश होता है उनको अग्नि देने वाला भी कोई नहीं बचता है घर पर अनेक बीमारियां होती है परिवार में कलह होता है औलाद निकम्मी और तेजहीन होती है और अंततः वंश खत्म होता है इसमें कोई दो राय नहीं है
और गायों की सेवा करने वाले को कामधेनु गौ माता सब कुछ देती है राजा दिलीप ने गौ सेवा करके ही अपने वंश की वृद्धि की थी और राजा जनक गोवंश से खेती करते वक्त उन की नोक से जमीन में छिपे हुये घड़े से सीता माता की प्राप्ति हुई।
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